Sunday, December 22, 2024
Homeदेश-विदेशकिंग चार्ल्स की ताजपोशी: किसी सम्राट को ताजपोशी की ज़रूरत क्यों होती...

किंग चार्ल्स की ताजपोशी: किसी सम्राट को ताजपोशी की ज़रूरत क्यों होती है?

क्या ब्रिटिश किंग की ताजपोशी आज भी उतनी ही अहमियत रखती है, जैसी सदियों पहले हुआ करती थी? और, एक सवाल ये भी है कि क्या ब्रिटेन के किंग को इसकी ज़रूरत है?

शनिवार को होने वाले अपनी तरह के अनोखे राज्याभिषेक समारोह को ब्रिटेन ही नहीं, पूरी दुनिया में करोडों लोग देखेंगे.
हो सकता है कि ब्रिटेन की जनता ऐसे शाही जश्न और समारोहों की आदी हो. उसे इस दौरान दिखने वाली तड़क-भड़क और आडंबर, इसमें उमड़ी भीड़ और सड़कों पर जश्न मनाने की आदत पड़ी हो.

6 मई को किंग चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी समारोह दुनिया के सामने वही शाही ठाठ-बाट और तड़क-भड़क पेश करेगा, जिसके लिए ब्रिटेन मशहूर है. लेकिन, किंग की ताजपोशी का ये समारोह, सदियों पुरानी परंपराओं में रचा बसा एक बेहद धार्मिक कार्यक्रम भी होगा.

लेकिन, ब्रिटेन ने ताजपोशी का जो पिछला शाही समारोह देखा था, वो 70 बरस पहले हुआ था. तब के मुक़ाबले अबकी बार मामला बिल्कुल अलग है, और किंग की ताजपोशी को लेकर लोगों में उत्सुकता है: क्योंकि, इस दौरान किंग चार्ल्स एक मध्यकालीन शपथ लेंगे.

इस दौरान उन्हें बारहवीं सदी के एक चम्मच से मंत्रों से अभिषिक्त पवित्र तेल लगाया जाएगा. ताजपोशी के इस समारोह में सात सौ साल पुरानी एक कुर्सी भी होगी, जिसमें एक पत्थर भी लगा है. इस पत्थर के बारे में कहा जाता था कि जब इस पत्थर को शाही तख़्त का वाजिब उत्तराधिकारी दिखता था, तो उससे दहाड़ निकलती थी.

कुछ जानकार, समारोह की तुलना शादी के कार्यक्रम से करते हैं. फ़र्क़ बस इतना होता है कि ताजपोशी में जोड़े का ब्याह रचाने के बजाय, राजा या महारानी की शादी उनके देश या सल्तनत से की जाती है.

लंदन के ऐतिहासिक चर्च वेस्टमिंस्टर एबे में जो दो हज़ार लोग किंग चार्ल्स की ताजपोशी के गवाह बनेंगे, उनसे पूछा जाएगा कि क्या वो उन्हें अपने शासक के तौर पर मान्यता देते हैं. उसके बाद ही किंग को ताजपोशी की अंगूठी देकर एक शपथ लेने को कहा जाएगा.

अगर ये सारे रीति रिवाज आपको किसी गुज़रे ज़माने के लगते हैं, तो इसकी वजह यही है कि पिछले लगभग एक हज़ार साल से ब्रिटेन में ताजपोशी समारोहों में शायद ही कोई बड़ा बदलाव आया हो. क़ानून की बात करें, तो इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. क्योंकि अपने पूर्ववर्ती के देहांत के बाद क़ानूनी वारिस ख़ुद-ब-ख़ुद किंग या क्वीन बन जाते हैं.

लेकिन, यह कार्यक्रम एक प्रतीकात्मक अहमियत रखता है. किंग्स कॉलेज लंदन में ताजपोशियों पर किए जा रहे रिसर्च के एक प्रोजेक्ट के अगुवा डॉक्टर जॉर्ज ग्रॉस कहते हैं कि ताजपोशी के ज़रिए किंग या महारानी शाही शासक की अपनी ज़िम्मेदारी को लेकर औपचारिक रूप से प्रतिबद्धता जताते हैं.

डॉक्टर जॉर्ज ग्रॉस मानते हैं कि किंग या महारानी अपनी ताजपोशी के वक़्त, जब सार्वजनिक रूप से ‘क़ानून की मर्यादा बनाए रखने और दया के साथ इंसाफ़ करने’ का वादा करते हैं, तो वो अपने आप में एक अनूठा और ख़ास लम्हा होता है.

वो कहते हैं कि, “आज की अनिश्चितताओं भरी दुनिया में जब नेता अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को लगातार तोड़ते रहते हैं, तब हमारे किंग को कहना होगा कि ‘ये वो बुनियादी बातें हैं, जो अहमियत रखती हैं’, तो इस बात से मुझे कोई झटका नहीं लगता.”

नए और पुराने दौर का मेल है ताजपोशी?

इसके बाद जो कुछ होता है, वो शायद ताजपोशी समारोह का निचोड़ है: ये बुनियादी तौर पर एक धार्मिक कार्यक्रम होता है. मंत्रों से सिद्ध पवित्र तेल को मध्ययुग के चम्मच में उड़ेलकर सम्राट के सिर, सीने और हाथों पर प्रतीकात्मक क्रॉस का निशान बनाते हुए लगाया जाता है.

डॉक्टर जॉर्ज ग्रॉस कहते हैं कि, ये प्रक्रिया पूरी होने पर ‘किंग को लगभग एक पादरी’ का दर्जा मिल जाता है. और, इससे किंग के चर्च ऑफ इंग्लैंड के मुखिया बनने का संकेत मिलता है.

संसद के लिए रिसर्च पेपर लिखने वाले डॉक्टर डेविड टॉरंस कहते हैं, “असल में ये इंग्लैंड के चर्च का समारोह है, और किंग को पवित्र तेल लगाना ज़रूरी होता है, क्योंकि इसका मतलब ये होता है कि उनके ऊपर ईश्वर ने कृपा कर दी है.”

डेविड टॉरंस ये भी कहते हैं, “लेकिन, इस समारोह के ज़रिए चर्च ऑफ़ इंग्लैंड सबको याद दिलाता है कि कि वो ब्रिटेन का मान्यता प्राप्त चर्च है और किंग उसके सर्वोच्च प्रशासक हैं.”

रॉयल स्टडीज़ नेटवर्क की निदेशक डॉक्टर एलेना वूडेकर कहती हैं कि पवित्र तेल लगाने का कार्यक्रम गुप्त रूप से किया जाता है, क्योंकि ये बेहद निजी लम्हा होता है. और, ऐसा करने के व्यवहारिक कारण भी हैं. क्योंकि जब किंग या महारानी के ऊपर पवित्र तेल छिड़का जा रहा होता है, तब वो बेहद कम कपड़ों में होते हैं.

वो कहती हैं कि जब किंग चार्ल्स के ऊपर पवित्र तेल छिड़का जा रहा होगा, तो कैमरों का रुख़ उधर से हट जाने की संभावना है. 1953 में जब महारानी एलिज़ाबेथ की ताजपोशी हुई थी, तब भी ऐसा ही हुआ था. वो पहली ताजपोशी थी, जिसका टीवी पर प्रसारण किया गया था. जब महारानी का शाही लबादा और उनके गहने उतार दिए गए थे, तो कैमरों का रुख़ उनकी ओर से मोड़ दिया गया था.

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments