मान्यता है कि सावन में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि के दिन इस गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करने से हर मनोकामना पूरी होती है. इस साल सावन के 59 दिनों में पहली मासिक शिवरात्रि 15 जुलाई और दूसरी शिवरात्रि 14 अगस्त को पड़ रही है. बहरहाल कांवड़ यात्रा को लेकर आपके मन में यह सवाल भी जरूर चल रहा होगा कि संसार का सबसे पहला कांवड़िया कौन था. तो चलिए इससे संबंधित दो प्रमुख कथाएं आपको बताते हैं.
क्या रावण था पहला कांवड़िया?
एक और धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को पी लिया था.जहर के नकारात्मक प्रभावों ने भोलेनाथ को असहज कर दिया था. भगवान शंकर को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने कांवड़ में गंगा जल भरकर कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया था. जिसके बाद भगवान शिव जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हो गए थे और उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई थी. मान्यताओं के अनुसार, यहीं से कांवड़ यात्रा का आरंभ माना गया और रावण को पहला कांवड़िया.
इस साल सावन (Sawan 2023) का महीना 4 जुलाई से शुरू हो रहा है. हिंदू धर्म में सावन मास बहुत पवित्र महीना माना जाता है. बाबा महादेव की भक्ति का महीना इस साल एक नहीं बल्कि दो महीने (59 दिन) तक चलेगा. इस बार शिव भक्तों को भोलेनाथ की उपासना करने के लिए सबसे ज्यादा समय मिलेगा.सावन की शुरुआत होते ही कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra 2023) भी शुरू हो जाती है. सावन में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ कई शिवभक्त पैदल कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और गंगा नदी का पवित्र जल कांवड़ में भरकर लाते हैं.
परशुराम ने लिया पिता की हत्या का बदला
कामधेनु को पाने के लालच में राजा सहस्त्रबाहुने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी. पिता की हत्या का बदला लेने के लिए परशुराम ने राजा की भुजाओं को काट दिया, जिससे उसकी भी मृत्यु हो गई. भगवान परशुराम की कठोर तपस्या के बाद ऋषि जमदग्नि को जीवनदान मिल गया. तब उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने को कहा. जिसके बाद परशुराम मीलों पैदल यात्रा कर कांवड़ में गंगाजल भरकर लाए. उन्होंने आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया. इसी कारण से भगवान परशुराम को संसार का पहला कांवड़िया माना जाता है.