कांग्रेस का कहना है कि वह अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। अगर सुप्रीम कोर्ट से राहुल को राहत मिल जाती है तो उनकी सांसदी बहाल हो सकती है और वे 2024 का लोकसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली तो वे अगले आठ साल चुनाव नहीं लड़ पाएँगे।
एक दिन पहले राजस्थान कांग्रेस की समझौता बैठक हुई और दूसरे दिन राहुल गांधी की सजा पर एक और फ़ैसला आ गया। मोदी सरनेम वाले मामले में सेशन कोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने भी राहुल की दो साल की सजा को बरकरार रखा है। हाई कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी ऐसे आधार पर सजा रोकने की माँग कर रहे हैं जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। सवाल यह है कि अब आगे क्या होगा?
बात केवल इसी केस की नहीं है, राहुल गांधी पर मानहानि के चार और मामले चल रहे हैं। 2014 में राहुल ने संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था। एक संघ कार्यकर्ता ने इस बयान को लेकर राहुल के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। यह केस महाराष्ट्र के भिवंडी कोर्ट में चल रहा है।
2016 में राहुल ने कहा था कि 16वीं सदी में असम के वैष्णव मठ बरपेटा सतरा को लेकर संघ के सदस्यों पर आरोप लगाया था। यह केस अभी पेंडिंग है। इसी तरह 2018 का एक केस झारखंड की राजधानी राँची में और एक और केस महाराष्ट्र के शिवडी में चल रहा है। यह केस गौरी लंकेश की हत्या को लेकर दिए गए बयान पर आधारित है।
कुल मिलाकर गुजरात के सेशन कार्ट द्वारा मोदी सरनेम मामले में दिया गया फ़ैसला अब पूरी तरह सुप्रीम कोर्ट पर आ टिकेगा। यहाँ से राहत नहीं मिली और राहुल गांधी आठ साल चुनाव नहीं लड पाए तो विपक्षी एकता के अभी जो प्रयास चल रहे हैं, उनका क्या होगा?
पिछले दिनों जब पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई थी तो राजद प्रमुख लालू यादव ने राहुल गांधी से कहा था कि आप दूल्हा बनिए, बरात में हम सब चलेंगे। उनका मतलब विपक्षी एकता का अग्रसर बनने से था। अब, राहुल अगर चुनाव ही नहीं लड़ पाएँगे तो उन्हें दूल्हा बनाने पर आख़िर कोई क्यों राज़ी होगा?
वैसे महाराष्ट्र के घटनाक्रम से तो विपक्षी एकता को धक्का लगा ही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी राहुल हार गए तो नुक़सान भारी होगा और उसकी भरपाई बहुत मुश्किल हो जाएगी। सत्ता पक्ष के ख़िलाफ़ साझा उम्मीदवार खड़ा करने का विचार तो अच्छा है लेकिन इसे परिणति तक पहुँचाना बहुत दूभर दिखाई पड़ता है।